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ग़ज़ल
अब देखें तो दूर कहीं पर यादों की फुलवारी में
रंगों से भरपूर फ़ज़ा थी जो लाफ़ानी लगती थी
फ़रह इक़बाल
ग़ज़ल
ग़म-ए-बेहद में किस को ज़ब्त का मक़्दूर होता है
छलक जाता है पैमाना अगर भरपूर होता है
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
कोई मिस्रा अगर दिल में उतर जाए ग़नीमत है
तग़ज़्ज़ुल से ग़ज़ल भरपूर हो ऐसा नहीं होता
अम्बर खरबंदा
ग़ज़ल
अहल-ए-नज़र हँस हँस कर तुझ को माह-ए-कामिल कहते हैं!
तेरे दिल का दाग़ तुझी पर तंज़ है और भरपूर है चाँद