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ग़ज़ल
चमन के गोशा गोशा में फ़क़त बिजली का चर्चा है
कुछ ऐसा रंग लाया है मिरा जल कर भसम होना
अनवारुल हक़ अहमर लखनवी
ग़ज़ल
जाने कितनी बार ये नगरी ग़म की आग में भस्म हुई
फिर भी इस पाषाण-पुरी के पत्थर बर्फ़-समान रहे
इंद्र सुरूप दत्त नादान
ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये भी क्या कम है कि दोनों का भरम क़ाएम है
उस ने बख़्शिश नहीं की हम ने गुज़ारिश नहीं की