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ग़ज़ल
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
शायद था बयाज़-ए-शब में कहीं इक्सीर का नुस्ख़ा भी कोई
ऐ सुब्ह ये तेरी झोली है या दुनिया भर का सोना है
हामिदुल्लाह अफ़सर
ग़ज़ल
हम भी क्या अहल-ए-क़लम हैं कि बयाज़ दिल पर
ख़ुद ही इक नाम लिखें ख़ुद ही मिटाने लग जाएँ