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ग़ज़ल
एक सख़ी को अपना समझ कर अर्ज़-ए-हाल की ठानी है
बैरी दिल कहता है पगले कासा भी छिन जाएगा
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
मिरी नींदों का जो बैरी उसी कम-लुत्फ़ की ख़ातिर
ये तरसा भी ये जागा भी मुझे इस दिल पे हैरत है
सुमन शाह
ग़ज़ल
हम दोस्त नहीं दुश्मन ही सही भाई न सही बेरी ही सही
हमसाए का हक़ तो दो हम को हम कुछ भी न हो हमसाए हैं
अमीर रज़ा मज़हरी
ग़ज़ल
सन्नाटे में जब जब छनकी बैरी पड़ोसन की पायल
जाने वाले याद में तेरी रात रात-भर जागी मैं
नसरीन नक़्क़ाश
ग़ज़ल
शम्स रम्ज़ी
ग़ज़ल
इधर ग़ैरत की ख़ुश्की है न गूलर है न बेरी है
मगर जिस सम्त चमचे हैं उधर अंगूर हैं साक़ी