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ग़ज़ल
जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है
कब कोई लड़की मन का दरीचा खोल के बाहर झाँकी है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सवाद चश्म-ए-बिस्मिल इंतिख़ाब-ए-नुक़्ता आराई
ख़िराम-ए-नाज़ बेपरवाई-ए-क़ातिल पसंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जिस्म के अंदर दिल की बेचैनी से ये मा'लूम हुआ
इस घर में सब चीज़ें अपनी हैं ये चीज़ पराई है
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
आप से मिल कर मेरी तबी'अत फूलों जैसी रहती है
वक़्त मिले तो कल फिर आना कल भी मेरी छुट्टी है
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
आएँगे सावन में साजन ले के आई है नवेद
बे-वज्ह फिरती नहीं पुरवाई बौराई हुई