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ग़ज़ल
दिखा कर इक नज़र दिल को निहायत कर गया बेकल
परी-रू तुंद-ख़ू सरकश हटेला चुलबुला चंचल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कल सीं बे-कल है मिरा जी यार कूँ देखा न था
क्यूँ न होवे बेताब दिल दिलदार कूँ देखा न था