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ग़ज़ल
बोल ऐ ताइब मिटा नक़्श-ए-सुवैदा किस तरह
लौह-ए-दिल पर लफ़्ज़-ए-हक़ मर्क़ूम कैसे हो गया
क़ासिम जलाल
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
हफ़ीज़ ताईब
ग़ज़ल
शग़्ल-ए-शराब ओ शीशा ओ साक़ी-ए-नग़्मा-संज
ताइब हुए हैं आलम-ए-पीरी में सब से हम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
'मुश्ताक़' सूफ़ियों में तो ताइब हुआ था कल
सुनता हूँ आज रिंदों में तौबा-शिकन हुआ
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी
ग़ज़ल
ख़ाक थे ग़ुंचा-लब और ख़्वाब थी लहजे की खनक
झड़ गया क़ब्र में जब हुस्न-ए-सरापा का नमक