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ग़ज़ल
ये जल्वों की ताबानियों का तसलसुल
ये ज़ौक़-ए-नज़र का दवाम अल्लाह अल्लाह
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
हुस्न की ताबानियों को मैं भी तो देखूँ ज़रा
तू रुख़-ए-ज़ेबा से ये पर्दा हटा मेरे लिए
एजाज़ क़ुरैशी
ग़ज़ल
अब तक मैं उस के प्यार की ताबानियों में थी
हर इक नक़ाब रुख़ से उठा जा रहा है आज
नफ़ीसा सुल्ताना अंना
ग़ज़ल
ऐ 'बद्र' सोज़-ए-ग़म का उजाला है हर तरफ़
मैं ज़ुल्मतों में रह के भी ताबानियों में हूँ
बद्र शम्सी
ग़ज़ल
इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
किसी सूरत नुमूद-ए-सोज़-ए-पिन्हानी नहीं जाती
बुझा जाता है दिल चेहरे की ताबानी नहीं जाती