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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जो शब-ए-सियाह से डर गए किसी शाम ही में भटक गए
वही ताजदार-ए-सहर बने जो सियाहियों में चमक गए
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जो शब-ए-सियाह से डर गए किसी शाम ही में भटक गए
वही ताजदार-ए-सहर बने जो सियाहियों में चमक गए