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ग़ज़ल
जहाँ ता-हद्द-ए-बीनाई मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हों
निशाँ क़दमों के मिट जाते हैं ऐसी रहगुज़ारों से
यासमीन हमीद
ग़ज़ल
तुझ पर पड़ी ये की छूट ऐ चश्म-ए-हैराँ कुछ तो फूट
क्या हद्द-ए-बीनाई में है वो ग़ैब-ए-फ़ाम आया हुआ
अहमद जावेद
ग़ज़ल
सुर्मा-ए-मक्र-ओ-फ़रेब आँखों में जब से है लगा
तब से है ख़ूब इज़ाफ़ा हद-ए-बीनाई में