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ग़ज़ल
न उट्ठा फिर कोई 'रूमी' अजम के लाला-ज़ारों से
वही आब-ओ-गिल-ए-ईराँ वही तबरेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'शम्स'-तबरेज़ ने मुर्दे को किया था ज़िंदा
शरअ' ने खींची अबस ऐसे ख़ुश-आमाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सुकून-ए-क़ल्ब पाना है तो सज्दा-रेज़ हो जाओ
बनाना है मुक़द्दर को तो फिर तबरेज़ हो जाओ
रशीद ख़ाँ रज़ा
ग़ज़ल
इस की ख़ाक-ए-शिफ़ा से जिला पा गए कितने रूमी यहाँ
ये ज़मीं अपनी शौकत में तबरेज़ थी इस को क्या हो गया
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
उस की ख़ाक-ए-शिफ़ा से जिला पा गए कितने रूमी यहाँ
ये ज़मीं अपनी शौकत में तबरेज़ थी इस को क्या हो गया