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ग़ज़ल
हो सके तो आप रखिए अपने ऐबों पर नज़र
दूसरों की ख़ामियों पर तब्सिरा अच्छा नहीं
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
कहीं हर्फ़ हर्फ़ गुलाब है कहीं ख़ुशबुओं से ख़िताब है
मैं ख़िज़ाँ-नसीब सही मगर मिरा तब्सिरा है बहार पर
विकास शर्मा राज़
ग़ज़ल
तुम्हारी रात पे इतना ही तब्सिरा है बहुत
मकीं अँधेरे में हैं चाँदनी में घर है मियाँ
क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ज़ल
मैं तो बहर-ए-ग़म के तूफ़ानों से टकराता रहा
लोग कुछ साहिल पे बैठे तब्सिरा करते रहे