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ग़ज़ल
कोई नाम-ओ-निशाँ पूछे तो ऐ क़ासिद बता देना
तख़ल्लुस 'दाग़' है वो आशिक़ों के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जब ही उस शोख़ ने पूछा कि तख़ल्लुस क्या है
देख कर शक्ल मिरी मुझ को ग़ज़ल-ख़्वाँ समझा
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तख़ल्लुस अच्छी लड़की का मुझे जब 'ज़ोया' मिलता है
मिरे अंदर दबी फिर हर ख़राबी चीख़ पड़ती है
ज़ोया शेख़
ग़ज़ल
क्यूँ कर न होवे क्लिक हमारा गुहर-फ़िशाँ
करते हैं 'आबरू' ये तख़ल्लुस सुख़न में हम
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
नाम-ए-'तस्कीं' पे ये मज़मून-ए-तपिश ना-ज़ेबा
था तख़ल्लुस जो सज़ा-वार तो बेताब मुझे
मीर तस्कीन देहलवी
ग़ज़ल
हज़ार हैफ़ 'मुनव्वर' की तीरा-बख़्ती पर
फ़ुज़ूल सा है तख़ल्लुस ये उस के नाम के बा'द
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
दुनिया में बड़ा शोर है शक्कर-शिकनी का
'शीरीं' जो तख़ल्लुस में हुआ नाम हमारा