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ग़ज़ल
तो फिर कैसी नज़र-बंदी तिलसिमात-ए-तदब्बुर क्या
जो ख़ुद को देख लें जश्न-ए-चराग़ाँ देखने वाले
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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तो फिर कैसी नज़र-बंदी तिलसिमात-ए-तदब्बुर क्या
जो ख़ुद को देख लें जश्न-ए-चराग़ाँ देखने वाले
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