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ग़ज़ल
मिरी फ़ितरत किसी का भी तआवुन ले नहीं सकती
इमारत अपने ग़म-ख़ाने की मैं तन्हा बनाता हूँ
अनवर जलालपुरी
ग़ज़ल
ज़ात सिफ़ात से आरी हो तो कैसा तआ'वुन ख़ारिज का
आँख तो थी ना-बीना नाहक़ सूरज का एहसान लिया
सय्यद नसीर शाह
ग़ज़ल
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
करिश्मा ये भी हो जाता तिरे अदना तआ'वुन से
मुझे तू सोचता तो मैं तिरी तख़्ईल हो जाता