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ग़ज़ल
तल्ख़ियाँ बढ़ गईं जब ज़ीस्त के पैमाने में
घोल कर दर्द के मारों ने पिया ईद का चाँद
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
है फ़साना इश्क़ का डूबा है साहिल अश्क में
मेरे मज़मूँ का ये उनवाँ तल्ख़ियाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं
कोई कहता है अपने हाथ से ये तल्ख़ियाँ रख दो
ज़ुबैर रिज़वी
ग़ज़ल
तल्ख़ियाँ इस में बहुत कुछ हैं मज़ा कुछ भी नहीं
ज़िंदगी दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
तुम दोस्त हो तो मुझ से ज़रा दुश्मनी करो
कुछ तल्ख़ियाँ न हों तो भला दोस्ती है क्या
इब्राहीम अश्क
ग़ज़ल
जाम-ब-दस्त-ओ-मय-ब-जाम यूँ ही गुज़ार सुब्ह-ओ-शाम
ज़ीस्त की तल्ख़ियाँ मुदाम पी के पिला के भूल जा