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ग़ज़ल
तमामी नफ़रतों पर गुफ़्तुगू की उम्र भर अब तो
चलो आओ करें थोड़ी वफ़ा-ओ-प्यार की बातें
राकेश तूफ़ान
ग़ज़ल
बदलते रहिए उनवाँ शरह-ए-रूदाद-ए-मोहब्बत के
किसी सूरत तमामी पर ये अफ़्साना नहीं आता
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
जिस पर उस माह-ए-तमामी-पोश का साया पड़े
बाग़ में वो सर्व हो रश्क-ए-महर्रा फ़ाख़्ता
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
उम्र तमामी शौक़ से हम ने एक ही तितली पाली थी
जब जब उस को ख़्वाब में देखा उड़ती है अग़्यार के साथ