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ग़ज़ल
एक अर्सा यहाँ ज़िंदगी अपनी तौलीद करती रही
इन खंडर ओढ़ते सब्ज़ा ज़ारों के दुख तुम नहीं जानते
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
एक अर्सा यहाँ ज़िंदगी अपनी तौलीद करती रही
इन खंडर ओढ़ते सब्ज़ा-ज़ारों के दुख तुम नहीं जानते
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
ख़ुदी से इस तिलिस्म-ए-रंग-ओ-बू को तोड़ सकते हैं
यही तौहीद थी जिस को न तू समझा न मैं समझा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तौहीद तो ये है कि ख़ुदा हश्र में कह दे
ये बंदा दो-आलम से ख़फ़ा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
گيا ہے تقليد کا زمانہ ، مجاز رخت سفر اٹھائے
ہوئي حقيقت ہي جب نماياں تو کس کو يارا ہے گفتگو کا
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गेहूँ चावल बाँटने वाले झूटा तौलें तो क्या बोलें
यूँ तो सब कुछ अंदर बाहर जितना तेरा उतना मेरा
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन
हम को तक़लीद-ए-तुनुक-ज़र्फ़ी-ए-मंसूर नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हमारे वज़्न-ए-मोहब्बत में कुछ हो फ़र्क़ तो अब
फिर इम्तिहाँ की तराज़ू में तौलिए साहिब