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ग़ज़ल
ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जिस के कारन त्याग तपस्या और तप को वन-वास मिला
सोच रहा हूँ इक रानी को क्यूँ ऐसा वर याद रहा
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
कड़ी मेहनत है या ये त्याग है या ये तपस्या है
मैं अक्सर सोचती रहती हूँ मेरी ज़िंदगी क्या है
डॉ अंजना सिंह सेंगर
ग़ज़ल
'तल्ख़' नहीं था सहल ये लहजा जीवन भर की तपस्या है
हर जज़्बे के हम ज़ामिन थे दर्द हमारा ज़ामिन था
मनमोहन तल्ख़
ग़ज़ल
तिरे दर्शन को बैठा हूँ मैं बरसों से तपस्या में
वही सूरत वही मूरत वही दिलबर वही पत्थर