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ग़ज़ल
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
तड़पता हूँ मगर औरों को तड़पाना नहीं आता
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
हम को हसरत दीद की है उन को तड़पाना पसंद
अपनी ख़्वाहिश कुछ है और उन की रज़ा कुछ और है
नईम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
बस अब हम से दिल-ए-शोरीदा-सर देखा नहीं जाता
ये तड़पाना तड़पना रात भर देखा नहीं जाता
क़ैसर हैदरी देहलवी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल ज़ुल्म भी ढाना नहीं आता
वो क्या तस्कीन देंगे जिन को तड़पाना नहीं आता
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
हम इंसाँ हैं दिल-ए-इंसाँ को तड़पाना नहीं आता
करम की शान रखते हैं सितम ढाना नहीं आता
अज़ीज़ मुबारकपुरी
ग़ज़ल
पता देता है ये रुक रुक के चलना तेग़-ए-क़ातिल का
कि अब मद्द-ए-नज़र रह रह के तड़पाना है बिस्मिल का
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क़
बिस्मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'दाग़' ओ 'मजरूह' को सुन लो कि फिर इस गुलशन में
न सुनेगा कोई बुलबुल का तराना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
मोहब्बत करने वालों का यही अंजाम होता है
तड़पना उन की क़िस्मत में तो सुब्ह-ओ-शाम होता है