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ग़ज़ल
अपने इक़रार पे क़ाएम न वो इंकार पे है
किस परी-ज़ाद का साया मिरे दिलदार पे है
मुनीरुद्दीन सहर सईदी
ग़ज़ल
नाम सुनता हूँ तिरा जब भरे संसार के बीच
लफ़्ज़ रुक जाते हैं आ कर मिरी गुफ़्तार के बीच
अदील ज़ैदी
ग़ज़ल
हम ने इक उम्र में क्या क्या न जहाँ देखे हैं
आसमाँ देखे हैं और क़ा'र-ए-निहाँ देखे हैं