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ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मिरे फ़न ने जिला पाई है हर तन्क़ीद जाएज़ है
हर इक तन्क़ीद-ए-जाएज़ को सर आँखों पर लिया मैं ने
कृष्ण गोपाल मग़मूम
ग़ज़ल
हमें मालूम है ना-जाएज़-ओ-जाएज़ है क्या लेकिन
शिकम की आग तो सारे सलीक़े मार देती है
मशकूर ममनून क़न्नौजी
ग़ज़ल
बज़्म में हम को बुला कर आप उठ कर चल दिए
क्या सुलूक-ए-नारवा जाएज़ है मेहमानों के साथ
गुलज़ार देहलवी
ग़ज़ल
मस्लक-ए-इश्क़ में जाएज़ है जफ़ा रहने दे
मुझ को महबूब की चौखट पे पड़ा रहने दे
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
फ़स्ल बोई जाएगी सुनते हैं अब मिर्रीख़ पर
दूरियाँ यूँ बढ़ रही हैं खेत से खलियान से