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ग़ज़ल
गुज़रे जो सू-ए-ख़ानक़ाह वाँ भी बशक्ल-ए-जानमाज़
अहल-ए-सलाह-ओ-ज़ुहद को फ़र्श किया बिछा दिया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हुआ है 'शौक़' मय-ख़ाने में दाख़िल किस तकल्लुफ़ से
बिछाने के लिए मस्जिद से ले कर जा-नमाज़ आया