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ग़ज़ल
डर जाना है दश्त-ओ-जबल ने तन्हाई की हैबत से
आधी रात को जब महताब ने तारीकी से उभरना है
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
उन को पा सकते हैं जब ख़ाना-ए-दिल में 'अनवर'
चाँद की सम्त सफ़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
अनवर निज़ामी जबल पुरी
ग़ज़ल
न अपनी कहना न मेरी सुनना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
अकेले रोना अकेले हँसना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
अनवर निज़ामी जबल पुरी
ग़ज़ल
क़ील से रोके उसे हम पे जब लाते हैं
तिफ़्ल-ए-अश्क अपने ये कहते हैं कि उस्ताद हैं हम
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
किस की खोज में हम ने दश्त-ओ-जबल देखे
बस्ती बस्ती हम जो फिरे तो किस के लिए
ज़ुल्फ़ेक़ार अहमद ताबिश
ग़ज़ल
न खींच दश्त ओ जबल बहर ओ बर से क़दमों को
ये सब रुकावटें हैं इन को पार करता चल
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
ग़ज़ल
तुझ में कहाँ ये बूक़लमूनी कहाँ ये संग
दश्त-ओ-जबल को ख़ैर से अब भाग ऐ बसंत
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
तू जानता है तिरे जाँ-निसार हैं हम लोग
रह-ए-वफ़ा में मगर संगसार हैं हम लोग