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ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
जिद्दत का तक़ाज़ा है उलट बात तू 'काज़िम'
दीवार को मैं सर से मियाँ फोड़ रहा हूँ
काज़िम हुसैन काज़िम
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
ये है जिद्दत-ए-तख़य्युल तो भला कहाँ ठिकाना
मिलें बिजलियों के तिनके तो बनाऊँ आशियाना
सिराज लखनवी
ग़ज़ल
अब फ़न्न-ए-शाइरी में तग़ज़्ज़ुल कहाँ बचा
या'नी ग़ज़ल के हुस्न को जिद्दत निगल गई