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ग़ज़ल
भर के साक़ी जाम-ए-मय इक और ला और जल्द ला
उन नशीली अँखड़ियों में फिर हिजाब आने को है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
ओस में भीगे शहर से बाहर आते दिन से मिलना है
सुब्ह-तलक संसार रहे तो हम को जल्द जगा देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
झूटी ख़बरें घड़ने वाले झूटे शे'र सुनाने वाले
लोगो सब्र कि अपने किए की जल्द सज़ा हैं पाने वाले