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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
नीम-शब की ख़ामोशी में भीगती सड़कों पे कल
तेरी यादों के जिलौ में घूमना अच्छा लगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
सच अच्छा पर उस के जिलौ में ज़हर का है इक प्याला भी
पागल हो क्यूँ नाहक़ को सुक़रात बनो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मुझ को जो चाह मोहब्बत की है मजनूँ को कहाँ
उस को लैला ही का सौदा है मैं दीवाना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
जो देखिए तो जिलौ में हैं मेहर-ओ-माह-ओ-नुजूम
जो सोचिए तो सफ़र की ये इब्तिदा भी नहीं
अख़्तर सईद ख़ान
ग़ज़ल
वो ख़ुल्क़ से पेश आते हैं जो फ़ैज़-रसाँ हैं
हैं शाख़-ए-समर-दार में गुल पहले समर से