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ग़ज़ल
सर-ब-सर बे-सर-ओ-सामाँ जिसे समझे थे वो दिल
रश्क-ए-जम्शेद-ओ-कै-ओ-ख़ुसरो-ओ-दारा निकला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
अह्द-ए-जमशेद में था लुत्फ़-ए-मय-ओ-अब्र-ओ-हवा
कब ये माशूक़ थे उस वक़्त की बरसातों में