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ग़ज़ल
फिर हैं वही उदासियाँ फिर वही सूनी काएनात
अहल-ए-तरब की महफ़िलें रंग जमा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ऐ अदू-ए-मस्लहत चंद ब-ज़ब्त अफ़्सुर्दा रह
करदनी है जम्अ' ताब-ए-शोख़ी-ए-दीदार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मुझे पता था कि ये हादसा भी होना था
मैं उस से मिल के न था ख़ुश जुदा भी होना था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
जम्अ' किया ज़िद्दैन को तुम ने सख़्ती ऐसी नर्मी ऐसी
मोम बदन है दिल है आहन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
क्या क्या हसीं थे जम्अ' परिस्ताँ का तख़्ता था
नज़रों में फिरते हैं रुख़-ए-ज़ेबा-ए-लखनऊ