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ग़ज़ल
अब तक उजड़े-पन में शायद कुछ नज़्ज़ारों लाएक़ है
वर्ना जमघट क्यूँ उमडा रहता है इस वीरानी पर
अखिलेश तिवारी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
ग़ैरों का मजमा' और तुम परियों का जमघट और हम
पहलू-ब-पहलू अंजुमन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
कमाल सालारपूरी
ग़ज़ल
बस दर-ओ-दीवार मिल जाते हैं घर मिलता नहीं
ऐसा दस्तारों का जमघट है कि सर मिलता नहीं