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ग़ज़ल
खरी बातें ब-अंदाज़-ए-सुख़न कह दूँ तो क्या होगा
अदू-ए-जान-ओ-तन को जान-ए-मन कह दूँ तो क्या होगा
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
तो मर्हबा की इक सदा हरम की सम्त से उठी
क़सीदा-ए-जनाब-ए-बू-तुराब लिख रहे थे हम
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
ग़ज़ल
جاسوس کہہ منج یار کوں مو چھوڑ کر کس سات ہے
اس شہر کا دے منج نشاں او باٹ کہہ کس دھات ہے