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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तू इस ग़रीब का क्या इज़्तिराब जानता है
नवा-ए-दश्त को भी जो सराब जानता है
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
बला का शोर-ओ-फ़ुग़ाँ है निहाँ ख़मोशी में
मैं खुल के सामने आया हूँ पर्दा-पोशी में