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ग़ज़ल
अरशद अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
न यहाँ तुलू-ओ-ग़ुरूब है न कोई शुमाल-ओ-जुनूब है
ये मैं किस तरफ़ निकल आया हूँ तिरे शश-जहात में घूमता
शाहिद माकुली
ग़ज़ल
निकला हूँ शहर-ए-ख़्वाब से ऐसे अजीब हाल में
ग़र्ब मिरे जुनूब में शर्क़ मिरे शुमाल में
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
अब तो दिल ओ दिमाग़ में कोई ख़याल भी नहीं
अपना जुनून भी नहीं उस का जमाल भी नहीं
सुनील कुमार जश्न
ग़ज़ल
ग़ौग़ा है शर्क़ ओ ग़र्ब ओ जुनूब ओ शुमाल में
फ़ित्ने जगा गई तिरी रफ़्तार हर तरफ़