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ग़ज़ल
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चराग़
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
वो जब बिछड़े थे हम तो याद है गर्मी की छुट्टीयाँ थीं
तभी से माह जुलाई मुझे अच्छा नहीं लगता
आमिर अमीर
ग़ज़ल
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
कि है सर-पंजा-ए-मिज़्गान-ए-आहू पुश्त-ख़ार अपना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्यूँ आ गए हैं बज़्म-ए-ज़ुहूर-ओ-नुमूद में
आज़ाद मर्द हो के रहे हम क़ुयूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
ज़माना है कि दिल-गीरी में अफ़्सुर्दा सा रहता है
तबीअत है कि ग़मगीनी में जौलानी पे आती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
किस रंग में बयान करें माजरा-ए-क़ल्ब
देखा जो हम ने जल्वा-ए-हैरत-फ़ज़ा-ए-क़ल्ब