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ग़ज़ल
अपनी अपनी सब की आँखें अपनी अपनी ख़्वाहिशें
किस नज़र में जाने क्या जचता है क्या जचता नहीं
अनवर मसूद
ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जचता नहीं निगाह में कोई हसीं भी 'हिज्र'
जब से किसी की चाँद सी सूरत नज़र में है
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल
मा-सिवा तेरे नज़र में कोई जचता ही नहीं
ख़ाना-ए-दिल में तुझे क्यूँ न मैं आबाद करूँ