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ग़ज़ल
सिर्फ़ लफ़्ज़ों को नहीं अंदाज़ भी अच्छा रखो
इस जगत में सिर्फ़ मीठी बोलियाँ रह जाएँगी
आदर्श दुबे
ग़ज़ल
जगत के लोग सारे 'आबरू' कूँ प्यार करते हैं
अगर तुम भी गले इस कूँ लगाओगे तो क्या होगा
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
जगत सबहहा अमत बरहमुख अटक कहसवा ममन करन खा
दिवानी केनी तुमन सुरीजन न सुध की गर पर न बुध की झाला
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
इक लहर उठी और डूब गए होंटों के कँवल आँखों के दिए
इक गूँजती आँधी वक़्त की बाज़ी जीत गई रुत बीत गई
मजीद अमजद
ग़ज़ल
'रवाँ' किस को ख़बर उनवान-ए-आग़ाज़-ए-जहाँ क्या था
ज़मीं का क्या था नक़्शा और रंग-ए-आसमाँ क्या था
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा
तू ही देख ऐ मिरे ख़ल्लाक़ हुस्न-ए-राएगाँ मेरा
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
ग़रज़ रहबर से क्या मुझ को गिला है जज़्ब-ए-कामिल से
कि जितना बढ़ रहा हूँ हट रहा हूँ दूर मंज़िल से