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ग़ज़ल
बढ़ती हुई तकरार जहेज़ की और ग़ुर्बत का बोझ
अपने आप को आग लगा के फिर इक मर गई बेटी
समीना असलम समीना
ग़ज़ल
शादियाँ दुश्वार-तर करने लगी रस्म-ए-जहेज़
लब पे आसानी से आता ही नहीं दुख़्तर का नाम