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ग़ज़ल
मैं अपने ख़्वाब से कट कर जियूँ तो मेरा ख़ुदा
उजाड़ दे मिरी मिट्टी को दर-ब-दर कर दे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
दुनिया भर की शान-ओ-शौकत ज्यूँ की त्यूँ ही धरी रही
मेरे बै-रागी मन में जब सच आया तो झूट गया
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
मिरे दिल कूँ किया बे-ख़ुद तिरी अँखियाँ ने आख़िर कूँ
कि ज्यूँ बेहोश करती है शराब आहिस्ता-आहिस्ता
वली दकनी
ग़ज़ल
तिरी शमशीर-ए-अबरू सीं हुए सन्मुख व इल्ला न
अजल की तेग़ सीं ज्यूँ आरा दंदाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
मैं कैसे जियूँ गर ये दुनिया हर आन नई तस्वीर न हो
ये आते जाते रंग न हों और लफ़्ज़ों की तनवीर न हो