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ग़ज़ल
क़लंदर जुज़ दो हर्फ़-ए-ला-इलाह कुछ भी नहीं रखता
फ़क़ीह-ए-शहर क़ारूँ है लुग़त-हा-ए-हिजाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
نہ ميں اعجمي نہ ہندي ، نہ عراقي و حجازي
کہ خودي سے ميں نے سيکھي دوجہاں سے بے نيازي
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हिजाज़ी रंग में जो रंग-ए-इरफ़ाँ देख लेते हैं
वो अपने कुफ़्र में भी नूर-ए-ईमाँ देख लेते हैं
राज कुमारी सूरज कला सरवर
ग़ज़ल
हिजाज़ी ले गई हम ने भुलाए तौर-ए-तुरकानी
बची ले दे के हम में अब फ़क़त अपनों की मन-मानी
दानिश असरी
ग़ज़ल
सारे ख़ाके उस के ख़ाके सारा मंज़र उस का है
अपना मुक़द्दर क़तरा-ए-शबनम और समुंदर उस का है
वफ़ा हिजाज़ी
ग़ज़ल
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
मिस्र ओ हिजाज़ से गुज़र पारस ओ शाम से गुज़र