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ग़ज़ल
शाख़ से उड़ गया परिंद है दिल-ए-शाम-ए-दर्द-मंद
सहन में है मलाल सा हुज़्न सा आसमाँ में है
जौन एलिया
ग़ज़ल
अगर हम उस की ख़ुशी में ख़ुश हैं तो दोस्तों ने
जवाज़-ए-हिज़्न-ओ-मलाल पूछा तो क्या कहेंगे
कबीर अतहर
ग़ज़ल
या रंज है या हिज्र है या हुज़्न है या ग़म
कुछ शक्ल बना कर तो मुसीबत नहीं आती
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
दम से यूसुफ़ के जब आबाद था याक़ूब का घर
चर्ख़ कहता था कि ये बैत-ए-हुज़न किस का है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
मोहम्मद अमीर आज़म क़ुरैशी
ग़ज़ल
महका हुआ है बैत-ए-हुज़न देखना कोई
आया नसीम-ए-मिस्र का हो कारवाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
कभी जो बैठ गए जा के दो घड़ी उस पास
'नज़र'-जी! धुल गया बरसों का जी से हुज़्न-ओ-मलाल
प्रेम कुमार नज़र
ग़ज़ल
शब-ए-ग़म दिल पे छा जाता है जब इक हुज़्न-ए-बे-ख़्वाबी
नशात-ए-रूह बन बन कर सुलाने कौन आता है
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
ज़िया फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
मताअ'-ए-हुस्न-ओ-जमाल-ओ-कमाल क्या क्या कुछ
चुरा के ले गए ये माह-ओ-साल क्या क्या कुछ