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ग़ज़ल
मिरी रिफ़अ'तों से लर्ज़ां कभी मेहर-ओ-माह ओ अंजुम
मिरी पस्तियों से ख़ाइफ़ कभी औज-ए-ख़ुसरवाना
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
है आज अंधेरा हर जानिब और नूर की बातें करते हैं
नज़दीक की बातों से ख़ाइफ़ हम दूर की बातें करते हैं
ओबैदुर रहमान
ग़ज़ल
किस की दहशत है कि पर्वाज़ से ख़ाइफ़ हैं तुयूर
क़ुमरियाँ शोर मचाती नहीं किस के डर से
ज़ाहिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
इतने ख़ाइफ़ हैं मय-ओ-मह से जनाब-ए-वाइज़
नाम-ए-क़ौसर भी जो सुनते हैं तो डर जाते हैं
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
शीरीं की अदाओं पर माइल परवेज़ की सतवत से ख़ाइफ़
जो बन न सके फ़रहाद कभी उन तेशा-ज़नों की याद आई
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
जाल के अंदर भी मैं तड़पूँगा चीख़ूँगा ज़रूर
मुझ से ख़ाइफ़ हैं तो मेरी सोच के पर काटिए