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ग़ज़ल
बर्फ़ भी सीमाब भी साहिल भी है गिर्दाब भी
ये तज़ाद-ए-ख़ासियत इक शक्ल-ए-इंसानी में है
अब्दुस्समद ’तपिश’
ग़ज़ल
मिलेंगी दो तमन्नाएँ तो हासिल कुछ नया होगा
कि अज्ज़ा से अलग होती है ख़ासिय्यत मुरक्कब की
शाहिद माकुली
ग़ज़ल
लेटता हूँ तो चिपक जाती है क्यों इस से कमर
देखता हूँ झाड़ कर क्या ख़ासिय्यत बिस्तर में है
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
अपनी धुन पर लहलहाना किश्त-ए-जाँ की ख़ासियत
मौसमों के दरमियाँ तिश्ना भी हों सैराब भी
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
घाव कारी उछ न जाना जीव होर जम तल्खली
यूँ तो ख़ासियत दिस्या तुझ 'इश्क़ की तरवार का
क़ाज़ी महमूद बेहरी
ग़ज़ल
मार-गज़ीदा कौन बचा है 'बासिर' शुक्र करो तुम
ठीक भी हो जाओगे लेकिन ख़ासी देर लगेगी