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ग़ज़ल
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दौर-ए-गर्दूं है ख़ुदावंदा कि ये दौर-ए-शराब
देखता हूँ जिस को मैं उस अंजुमन में मस्त है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
जिसे देखो वो है सरमस्त-ए-सहबा-ए-ख़िरद यकसर
ख़ुदावंदा! यहाँ इक तेरे दीवाने से क्या होगा
इम्तियाज़ अली अर्शी
ग़ज़ल
ख़ुदावंदा फिर आख़िर क्या तमन्ना है मिरे दिल की
वो पहलू में भी हैं लेकिन परेशानी नहीं जाती
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
ख़ुदावंदा न जाने उन तिरे बंदों पे क्या गुज़रे
निकल आते हैं जीते जागते चूज़े मशीनों में
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
हम अपने आप में आज़ाद हैं लेकिन ख़ुदावंदा
हमारे दस्त-ओ-पा में वक़्त की ज़ंजीर कैसी है
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
ख़ुदावंदा इन्हें किस दिन शुऊर आएगा दुनिया का
रहेंगी बे-पढ़ी-लिक्खी हमारी लड़कियाँ कब तक