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ग़ज़ल
बग़ैर ख़ूबी-ओ-ख़िदमत बशर अच्छे नहीं लगते
न जिन में फूल फल हों वो शजर अच्छे नहीं लगते
सुल्तान शाकिर हाश्मी
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
जो तेरी चाह में ख़ाना-ख़राब होता है
जहान-ए-इश्क़ में वो कामयाब होता है
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
दोनों फ़र्ज़ निभा कर उस ने सारी उम्र इबादत की
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
कार-ज़ार आफ़ाक़ है अहल-ए-शुजाअ'त के लिए
गुलसिताँ हम-राज़ है अहल-ए-मुहब्बत के लिए
मोहन सिंह दीवाना
ग़ज़ल
दिल के क़िर्तास पे इक लफ़्ज़ मोहब्बत लिखना
जो कभी इश्क़ में की थी वो रियाज़त लिखना