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ग़ज़ल
कहने लगा वो हाल मिरा सुन के रात को
सब क़िस्से जा चुके ये ख़ुराफ़ात रह गई
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
इस दौर-ए-ख़ुराफ़ात में बे-क़द्र हूँ फिर भी
तू जितना समझता है मैं कुछ उस से सिवा हूँ
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल आने पे हो जाती है वीरानी दूर
दिल ख़राबे से ख़राबात में आ जाता है
मोहम्मद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
मख़मूर है मदहोश है दुनिया मिरे आगे
कुछ और भी हैं इस के ख़ुराफ़ात बता दूँ