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ग़ज़ल
शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
न पूछ उन ख़िर्क़ा-पोशों की इरादत हो तो देख उन को
यद-ए-बैज़ा लिए बैठे हैं अपनी आस्तीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए ना ताज-ए-शाहाना
मुझे तो होश दे इतना रहूँ मैं तुझ पे दीवाना
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मिरा तो सिलसिला है ख़िर्क़ा-पोशों के क़बीले से
मुझे मत ख़िलअतें पहना मुझे अच्छा नहीं लगता
मोहम्मद नईम जावेद नईम
ग़ज़ल
ये ख़िर्क़ा-पोश फ़क़ीरान-ए-ख़ारिक़-उल-आदात
हमारे क़ाफ़िला-हा-ए-नियाज़-ओ-नाज़ के साथ
रईस अमरोहवी
ग़ज़ल
मानिंद-ए-दश्त ख़िर्क़ा हुआ कोहना ऐ 'नसीम'
दामन के हर तरफ़ से किनारे निकल गए
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
जामा-ज़ेबों की नज़र भी दल्क़-ए-'अकबर' पर पड़ी
शान ही कुछ और थी उस ख़िर्क़ा-ए-पारीना की
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
याँ तुम को ये आवाज़-ए-दफ़-ओ-चंग मुबारक
बे-कश्मकश-ए-ख़िर्क़ा-ओ-तस्बीह-ओ-रिदा रक़्स