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ग़ज़ल
किसी ऐसे शरर से फूँक अपने ख़िर्मन-ए-दिल को
कि ख़ुर्शीद-ए-क़यामत भी हो तेरे ख़ोशा-चीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
चर्ख़-ए-कज-रफ़्तार है फिर माइल-ए-जौर-ओ-सितम
बिजलियाँ शाहिद हैं ख़िर्मन को जलाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
ग़ज़ल
रौनक़-ए-हस्ती है इश्क़-ए-ख़ाना वीराँ साज़ से
अंजुमन बे-शमा है गर बर्क़ ख़िर्मन में नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बर्क़-ए-ख़िर्मन-ज़ार गौहर है निगाह-ए-तेज़ याँ
अश्क हो जाते हैं ख़ुश्क अज़-गरमी-ए-रफ़्तार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मिरी ता'मीर में मुज़्मर है इक सूरत ख़राबी की
हयूला बर्क़-ए-ख़िर्मन का है ख़ून-ए-गर्म दहक़ाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ुशी क्या खेत पर मेरे अगर सौ बार अब्र आवे
समझता हूँ कि ढूँडे है अभी से बर्क़ ख़िर्मन को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़िर्मन-ए-बुलबुल तो फूँका इश्क़-ए-आतिश-रंग ने
रंग को शोला बना कर कौन परवाने में है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
बर्क़ भी गिरती है अक्सर ख़िर्मन भी जलते हैं मगर
अपने हाथों ख़िर्मन को आग लगाना सहल नहीं
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
बजाए दाना ख़िर्मन यक-बयाबाँ बैज़ा-ए-कुमरी
मिरा हासिल वो नुस्ख़ा है कि जिस से ख़ाक पैदा हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़ुसून-ए-यक-दिली है लज़्ज़त-ए-बेदाद दुश्मन पर
कि वज्द-ए-बर्क़ जूँ परवाना बाल-अफ़्शाँ है ख़िर्मन पर