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ग़ज़ल
ताकि दुनिया पे खुले उन का फ़रेब-ए-इंसाफ़
बे-ख़ता हो के ख़ताओं की सज़ा माँगते हैं
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
ज़ाहिद से ख़ताओं में तो निकलूँगा न कुछ कम
हाँ मुझ को ख़ताओं पे पनपना नहीं आता