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ग़ज़ल
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मुझे आता है क्या क्या रश्क वक़्त-ए-ज़ब्ह उस से भी
गला जिस दम लिपट कर ख़ंजर-ए-क़ातिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कोई और तो नहीं है पस-ए-ख़ंजर-आज़माई
हमीं क़त्ल हो रहे हैं हमीं क़त्ल कर रहे हैं
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता कि फिर ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है