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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
सवाल-ए-वस्ल पर उन को अदू का ख़ौफ़ है इतना
दबे होंटों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे
मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत तिरे नाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
मैं मुज़्तरिब हूँ वस्ल में ख़ौफ़-ए-रक़ीब से
डाला है तुम को वहम ने किस पेच-ओ-ताब में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
पाँव में रिश्तों की ज़ंजीरें हैं दिल में ख़ौफ़ की
ऐसा लगता है कि हम अपने घरों में क़ैद हैं